Mini Carousel

Copy to clipboard

आध्यात्म

   मनुष्य एक विवेकशील जीव है। इस आशय को समझते हुए भी मनुष्य का मन भौतिकता के पीछे भागता है। इसके पीछे कारण यही है कि मनुष्य तात्कालिक सुख चाहता है। उस तात्कालिक सुख से ही अपने आप में संतुष्ट महसूस करता है। लेकिन वास्तविकता कुछ और है। चूंकि मनुष्य को अपना शरीर और मन स्वस्थ रखने के लिए भोजन, पानी इत्यादि की आवश्यकता है, वह उन चीजों के लिए अधीर होता है। मनुष्य समझता है, क्या हानिकारक है और क्या लाभदायक है, फिर भी वह ऐसी चीजों के पीछे भागता है जो उसके लिए हानिकारक हैं। ऐसा इसलिए होता है कि जो चीजें सरल और सहज तरीके से मिलें और जिनमें क्षणिक सुख हो, वे उसे आकर्षित करती हैं। इसलिए अक्सर मनुष्य भौतिकता की ओर भागता है।

मनुष्य के जीवन का तीन स्तर है- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। इन तीनों के बीच जो संतुलन बनाए रखता है वही स्थायी सुख का अनुभव कर सकता है। महान पंडित और ज्ञानी व्यक्ति जानते हैं कि क्या उचित है और क्या अनुचित है, फिर भी अपने जन्मजात संस्कारों के चलते अनुचित वस्तुओं के पीछे भागते हैं। जब एक ज्ञानी व्यक्ति का मन स्थूल भौतिकता के पीछे भागता है तब कौन मन को बलपूर्वक खींचकर सूक्ष्मता की ओर ले जा सकता है/ केवल आध्यात्मिक पथ ही सही दिशा और पथ का निर्देशन कर सकता है।

आध्यात्मिक प्रगति के लिए यंत्र की आवश्यकता है। और वह यंत्र क्या है/ वह है मंत्र। याद रखना चाहिए कि मंत्र मनुष्य के मन के अंदर की जड़ता को दूर कर मन को इतना विकसित कर देता है कि वह आध्यात्मिक पथ की ओर अग्रसर होने लगता है। अगर मंत्र को नहीं अपनाएं तो आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं होगी। तब अस्तित्व का अर्थ नहीं रहेगा। इसलिए बुद्धिमान मनुष्य जितनी कम उम्र में हो सके अपना मंत्र ले लें। संस्कार के अनुसार मंत्र निर्धारित कर लें और उसी के अनुसार आगे बढ़ते रहें। आध्यात्मिक जगत में चलते रहें। प्रगति सिर्फ आध्यात्मिक जगत में हो सकती है। बुद्धिमान मनुष्य देखते हैं कि जिस जगत में सही प्रगति होती है उसी जगत में चलते रहते हैं। दूसरे शब्दों में वे आध्यात्मिक जगत में चलते रहते हैं। आध्यात्मिक जगत में चलते वक्त मानसिक तथा स्थूल जगत के प्रति अपना कर्तव्य सही तरीके से निभाते रहना भी जरूरी है। यही है मनुष्य का जीवन।

आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति के लिए मानसिक क्षेत्र या भौतिक क्षेत्र की उपेक्षा करने से काम नहीं चलेगा। मनुष्य जब दृढ़ता के साथ आध्यात्मिक क्षेत्र में चलता है तो आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति के साथ ही उसमें प्रेम, श्रद्धा, भाईचारा, साहस और सत्यनिष्ठा का जागरण होता है जिसका उपयोग समस्त संसार के मानसिक कल्याण के लिए होता है। आध्यात्मिक साधक समस्त संसार के कल्याणमूलक कार्यों में अपना योगदान करते हैं क्योंकि आध्यात्मिक साधकों जैसी सेवा कोई नहीं कर सकता। इसलिए जो व्यक्ति अध्यात्म के पथ पर अग्रसर है उसे यह याद रखना चाहिए कि वह आध्यात्मिक प्रगति के लिए साधना कर रहा है और वह तब तक सफल नहीं होगा जब तक वह संसार की सेवा के लिए स्वयं को प्रस्तुत नहीं करेगा। साथ-साथ यह बात भी याद रखनी होगी कि जगत की सेवा उन्हीं से हो सकती है जो आध्यात्मिक साधना के पथ पर दृढ हों।
Comment

कोई टिप्पणी नहीं :