व्याकरण-कारक एवं विभक्ति
संज्ञा
या
सर्वनाम
के
जिस
रूप
से
उसका
संबंध
वाक्य
के
किसी
दूसरे
शब्द
के
साथ
स्पष्ट
होता
हो,
उस
रूप
को
'कारक'
कहते
हैं।
कारक
सूचित
करने
के
लिए
संज्ञा
या
सर्वनाम
के
आगे
जो
प्रत्यय
लगाए
जाते
हैं,
उन्हें
'विभक्तियाँ'
कहते हैं।
हिंदी
में
आठ
कारक
हैं।
इनके
नाम,
विभक्तियाँ,
लक्षण
और
उदाहरण
नीचे
दिए
गए
हैं
:
तिर्यक रूप : जब
किसी
संज्ञा
या
सर्वनाम
के
साथ
विभक्ति
का
प्रयोग
होता
है,
तब
संज्ञा
या
सर्वनाम
के
मूल
रूप
में
परिवर्तन
होता
है।
यह
परिवर्तन
लिंग
और
वचन
पर
आधारित
होता
है।
संज्ञा
अथवा
सर्वनाम
के
इस
परिवर्तित
रूप
को
'तिर्यक
रूप'
कहते
हैं।
तिर्यक
रूप
का
निर्माण
किस
तरह
होता
है,
यह
नीचे
दिए
गए
उदाहरणों
से
स्पष्ट
है
:
(1) लड़का
+ ने = लड़के
ने
(पुल्लिंग एकवचन)
(2) लड़के
+ने = लड़कों
ने
(पुल्लिंग बहुवचन)
(3) बालक+ने
= बालक ने
(पुल्लिंग एकवचन)
(4) बालक+ने
= बालकों ने
(पुल्लिग बहुवचन)
(5) लड़की+ने
= लड़की ने
(स्त्रीलिंग एकवचन)
(6) लड़कियाँ
+ ने = लड़कियों
ने
(स्त्रीलिंग बहुवचन)
(7) बालिका+ने
= बालिका ने
(स्त्रीलिंग एकवचन)
(8) बालिका+ने
= बालिकाओं ने
(स्त्रीलिंग बहुवचन)
यहाँ
रेखांकित
शब्द
अपने
तिर्यक
रूप
में
हैं।
इसी
प्रकार
सर्वनाम
भी
रूपांतरित
होते
हैं।
जैसे-वह
+ ने = उसने;
वे
+ ने = उन्होंने।
विशेष : कर्ता
कारक
और
कर्म
कारक
का
विभक्तिरहित
प्रयोग
भी
होता
है।
जैसे
- अरुण पुस्तक
पढ़ता
है।
कुछ
विशेष
प्रयोगों
में
कारक
की
विभक्तियाँ
बदल
भी
जाती
है।
जैसे
कर्ता
कारक
की
विभक्ति
'ने'
है
किंतु
गौण
रूप
में
'से'
या
'द्वारा'
का
प्रयोग
हो
सकता
है।
'को'
का
प्रयोग
भी
कभी-कभी
होता
है।
कर्म
कारक
में
कभी-कभी
'से'
का
प्रयोग
होता
है।
उदाहरण
:
1. राम
से
पुस्तक
पढ़ी
गई।
...... (कर्ता
कारक)
2. श्याम
को
कहना
पड़ा।
........ (कर्ता
कारक)
3. कृष्ण
ने
वरुण
से
कहा।
..... (कर्म
कारक)
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