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ध्यान


   
      एक बार बुद्ध भिक्षाटन के लिए निकले। कुछ लोग उनका आदर भी करते थे, तो कुछ लोग उन्हें भला-बुरा कहने से भी नहीं चूकते। कोई आदर से भिक्षा देता था तो कोई दूर से ही कन्नी काट लेता। बुद्ध हमेशा शांत बने रहते थे। भिक्षाटन करते हुए बुद्ध एक उच्च जाति के व्यक्ति के घर के पास पहुंचे ही थे कि वह चिल्लाने लगा। उसने बुद्ध से कहा, 'अरे नीच, तुम मेरे घर के निकट मत आओ। बुद्ध ने उससे पूछा, 'भाई, नीच कौन होता है? क्या तुम बता सकते हो कि वे कौन सी बातें हैं जो किसी को नीच बनाती हैं?' बुद्ध के स्वर में झलक रही शांति और गंभीरता से वह अप्रभावित नहीं रह सका, फिर भी थोड़ी अकड़ के साथ बोला, 'मैं नहीं जानता। तुम ही बताओ कि नीच कौन होता है?
   बुद्ध ने उस व्यक्ति को प्यार से कहा, 'देखो, जो व्यक्ति किसी से वैर-भाव रखता है, किसी से ईर्ष्या करता है, किसी पर क्रोध करता है, निरीह प्राणियों पर अत्याचार या किसी की हत्या करता है, वही नीच होता है। बुद्ध ने आगे कहा, जो व्यक्ति ऋण लेकर लौटाते समय झगडा अथवा बेईमानी करता है, जो राह चलते लोगों को मार-पीटकर लूट लेता है, जो माता-पिता की सेवा बड़ों का आदर करना नहीं जानता, उनका अपमान करता है, वह नीच होता है।'
   फिर बुद्ध ने समझाते  हुए कहा कि जो लोगों को कुमार्ग पर चलाता है, जो हेराफेरी करता है, जो सदैव मोह-माया से ग्रस्त रहता है, जो सिर्फ अपनी प्रशंसा दूसरों की निंदा में रत रहता है, उससे बड़ा नीच कोई नहीं होता। जब कोई किसी पर चिल्लाता है, उसे अपशब्द कहता है या उसे नीच बतलाता है तो उस समय चिल्लाने वाला या दूसरे को नीच बताने वाला व्यक्ति ही वास्तव में नीचता पर उतारू होता है।


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