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नारी का सम्मान-भाग-२

आज की नारी पुरुष से बराबरी से चल रही है। महिलाएं सातवें आसमान पर झंडा गाड़ कर कल्पना चावला बन रही है। किरण बेदी बनकर अपराधियों को पकड़ रही है।अरुणा राय और मेघा पाटकर बनकर सामाजिक अन्याय से जूझ रही है। प्रतिभा पाटिल जैसे सर्वोच्च पद पर आसीन है। आज की नारी वदूष बनकर लोकसभा की सदारत कर रही है। ओर भी कई ऐसी नारिया है जो सम्मानीय है। जैसे मदर टेरेसा, लता मंगेशकर बनकर भारत रत्न तक प्राप्त कर रही है। आज की नारी हर क्षेत्र में सम्मान प्राप्त कर रही है। और पुरुष के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।
  नारी का सम्मानीय स्थान होना चाहिए उसके प्रति पुरुष प्रधान समाज को सम्मान की दृष्टि रखना चाहिए, नारी  को अपने से कम नहीं समझना चाहिए। आज पूरे विश्व में 8 मार्च का दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है। नारी का धरती पर सबसे सम्मानीय रूप है माँ का, माँ जिसे ईशवर से भी बढ़कर माना जाता है तो माँ का सम्मान को कम नहीं होने देना चाहिए। माना आज की संतान अपने मां को इतना महत्व नहीं देती जो कि गलत है।
  आज की नारी घर के कामकाज के अलावा पढ़ लिख कर दोहरी जिम्मेदारी निभा रही है घर के कामकाज ओर नोकरी करना नारी के लिए दाएं हाथ का काम है। फिर पुरुष क्यों नहीं समझता कि जो नारी अपने घर अपन बच्चेे ओर अपने परिवार के लिए अपना पूरा जीवन दे देती है। तो उसका सम्मान करे ना की अपमान ! नारी को को और अपने आप को शर्मिंदा ना करे। छोटी बच्चियों जो कि देवी का रूप होती है। तो उसे उसी रूप में स्वीकारे। ना कि अपनी मानसिकता को गिरा कर ऐसे काम करे कि बाद में न्याय और माफी की कोई गुंजाइश ही ना बचे ऐसे गिरे हुए लोगो को अपनी मानसिकता बदलनी होगी।
  आज कल ऐसी घटनाएं सुनने में आती है कि उस व्यक्ति के प्रति क्रोध और शर्म आती है। कि जिस देश मे नारी की पूजा की जाती है उसी देश मे ओर पूरी दुनिया मे ही नारी का अपमान किया जाता है। इसके प्रति सरकार को कड़ा कानून बनाना होगा जिससे ऐसा व्यक्ति कुछ करने से पहले ही डरे। इसलिए हर क्षेत्र और जाति समाज और धर्म मे नारी का सम्मान सर्वोच्च होना चाहिए।
  आज हमारे देश मे शिक्षा का महत्व:- आज हमारे देश की योग्य लडकिया देश विदेश में रहकर उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। वे कुशल डॉक्टर, इंजीनियर, आई.ए. एस. अफसर तथा पुलिस की बड़ी नोकरियो एवं सेना में काम कर रही है। कुछ ऐसे सेवा के क्षेत्र भी है, जिसमे महिलाएं अपनी अग्रणी भूमिका निभाती है। नर्सिंग, शिक्षा, समाज तथा समुदाय सेवा में महिलाओ की संख्या काफी है। शिक्षा जे प्रचार के कारण महिलाएं एक शिक्षक के रूप में भी अपनी विशिष्ट भूमिका निभा रही है। रेडियो, दूरदर्शन तथा सिनेमा में भी आगे बढ़ कर महिलाएं भाग ले रही है। एयरहोस्टेस के रूप में तो नारियां काम करती ही है अब वो विमान चालक के रूप में भी काम करने लगी है। यह सब नारियों की शिक्षा तथा उनकी लगन का ही परिणाम है। जो उन्हें देश सेवा की अग्रणी पंक्ति में स्थान दिल रहा है। पुलिस में भी सिपाहियों से लेकर ऊँचे-ऊँचे पदों तक मे स्त्रियों की भागीदारी बढ़ रही है।
  ऐसा विचार किया जा रहा है कि सरकारी सेवा, विधान सभा तथा लोकसभा के चुनावो में नारियों के लिए कम से कम 30 प्रतिशत सीटे आरक्षित की जाये। ग्रामप्रधान के रूप में नारियो की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। ऐसा विशवास किया जाता है, कि शिक्षा प्राप्ती में उनका प्रतिशत बढ़ने से स्वतः भी नारियां देश की सभी प्रकार की सेवाओं में अग्रणी भूमिका निभा सकेंगी। हमारे देश में अनेक ऐसे संस्थान है, जो नारियो में शिक्षा तथा अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास कर रहे है। स्वामी दयानंद जी द्वारा स्थापित आर्य समाज ने नारी जागरण के लिए काफी कम किया है। आज भी डी. ए. वी. स्कूलो के माध्यम से बालिकाओं को शिक्षित बनाने का उपयोगी कार्य किया जा रहा है। दूसरी अन्य संस्थाये तथा मिशनरी स्कूल भी नारियो की शिक्षा के लिए काफी कुछ कर रही है। विगत 2-3 दशकों से शिशु भारती, बाल भारती, शिक्षा भारती के रूप में राष्टीय स्वयंसेवक संघ द्वारा भी बालिकाओं की शिक्षा के लिए व्यापक कदम उठाए जा रहे है।
  हमारे देश की जनसंख्या में मुसलमानों की भागीदारी का भी 15-16 प्रतिशत है, किंतु जहां तक नारि शिक्षा का सम्बंध है, उनमे इसके लिए अभी तक पूरी तरह ध्यान नही दिया जा रहा है। हिंदुस्तान की आजादी के बाद जिस तेजी के साथ शिक्षा की ओर जोर दिया जाना चाहिए था, वह नही हो सका।
  असमंजस भरी स्थिति में नारी शिक्षा का प्रशन भी उलझकर रह गया है। हर इंसान आस पास के वातावरण को देख कर यह अंदाजा लगा लेता है। कि नारी शिक्षा का फैलाव हो गया है बहुत सी लडकिया स्कूल जाने लगी है, ऊँची पढ़ाई पढ़ कर ऊँचे ओहदों पर भी तैनात हो गई है। लेकिन ऐसी महिलाओं की संख्या बहुत कम है। शिक्षा का स्तर बढ़ने के साथ साथ रोजगार के अवसरों में जो तेजी आनी चाहिए थी, वह नही आई। इसकी वजह से पुरुषों की तरह ही नारियो में भी हताशा की भावना बढ़ने लगी है। वे भी सोचती है, कि पढ़ लिखकर ही क्या होगा जब जीवन भर ग्रहस्थि की गाड़ी ही खींचनी है।
  उपसंहार- नारी पराधीनता से मुक्त होकर आज पुनः अपनी एवं रूम गरिमा को पा रही है। पाश्चात्य प्रभाव के कारण नारी समाज के एक वर्ग में विलासीता की भावना अवश्य बड़ी है किंतु वह दिन दूर नहीं जब वह सदमार्ग पर आ जाएगी वो अपने रूप को वर्णन करेगी। वस्तुतः नारी मानवता की प्रतिमूर्ति है।
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