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प्रदूषण भाग-१


भूमिका : मनुष्य प्रकृति की एक सर्वश्रेष्ठ रचना है। जब तक मनुष्य प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करता है तब तक उसका जीवन सभ्य और सहज बना रहता है। लेकिन विज्ञान के इस युग में मानव को जहाँ पर कुछ वरदान मिले हैं वहीं पर अभिशाप भी दिए हैं।
प्रदूषण प्राणी के लिए एक ऐसा अभिशाप है जो विज्ञान की कोख से जन्मा है जिसे सहने के लिए ज्यादातर लोग मजबूर हैं। प्रदूषण आज के समय की एक गंभीर समस्या बन चुकी है। जो लोग प्रकृति और पर्यावरण प्रेमी हैं उनके लिए यह बहुत ही चिंता का विषय है।
प्रदूषण से केवल मनुष्य समुदाय ही नहीं बल्कि पूरा जीव समुदाय प्रभावित हुआ है। इसके दुष्प्रभावों को चारो तरफ देखा जा सकता है। पिछले कुछ सालों से प्रदूषण बहुत अधिक मात्रा में बढ़ा है कि भविष्य में मनुष्य जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल हो जायेगा।
प्रदूषण का अर्थ एवं स्वरूप : प्रदूषण का अर्थ होता है – गंदगी या प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। स्वच्छ वातावरण में ही जीवन का विकास संभव होता है। जब हमारे वातावरण में कुछ खतरनाक तत्व आ जाते हैं तो वे वातावरण को दूषित कर देते हैं। यह गंदा वातावरण हमारे स्वास्थ्य के लिए अनेक तरह से हानिकारक होता है। इस तरह से ही वातावरण के दूषित होने को ही प्रदूषण कहते हैं। औद्योगिक क्रांति की वजह से पैदा होने वाले कूड़े-कचरे के ढेर से पृथ्वी की हवा और जल प्रदूषित हो रहे हैं।
प्रदूषण के प्रकार : प्रदूषण कई तरीकों से हानिकारक होता है। प्रदूषण कई तरह का होता है।
1. वायु प्रदूषण : वायु हमारे जीवन के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्त्रोत होती है। जब वायु में हानिकारक गैसें जैसे कार्बन-डाई-आक्साइड और कार्बन-मोनो-आक्साइड मिलते हैं तो वायु को प्रदूषित कर देते हैं इसे ही वायु प्रदूषण कहते हैं। बहुत से कारणों से जैसे – पेड़ों का काटा जाना, फैक्ट्रियों और वाहनों से निकलने वाले धुएं से वायु प्रदूषण होता है।
वायु प्रदूषण की वजह से अनेक तरह की बीमारियाँ भी हो जाती हैं जैसे – अस्थमा, एलर्जी, साँस लेने में समस्या होना आदि। जब मुंबई की औरतें धुले हुए कपड़ों को छत से उतारने के लिए जाती हैं तो उन पर काले-काले कणों को जमा हुआ देखती हैं। ये कण साँस के साथ मनुष्य के फेफड़ों में प्रवेश कर जाते हैं जिसकी वजह से मनुष्य को असाध्य रोग हो जाते हैं। वायु प्रदूषण को रोकना बहुत ही आवश्यक है।
2. जल प्रदूषण : जल के बिना किसी भी प्रकार से जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जब इस जल में बाहरी अशुद्धियाँ मिल जाती हैं जिसकी वजह से जल दूषित हो जाता है इसे ही जल प्रदूषण कहते हैं। जब बड़े-बड़े नगरो और शहरों के गंदे नालों और सीवरों के पानी को नदियों में बहा दिया जाता है और यही पानी हम पीते हैं तो हमें हैजा, टाइफाइड, दस्त जैसे रोग हो जाते हैं।
जल प्रदूषण के दूषित होने का कारण गंगा जैसी पवित्र नदी में मृत व्यक्तियों के शवों को बहा देना, नदियों में स्नान करना, उद्योगों के कचरे को नदियों में बहा देना, होते हैं। जब बाढ़ आती है तो कारखानों का बदबूदार पानी नदी, नालों और नालियों में मिलकर जल प्रदूषण के साथ-साथ अनेक बिमारियों को भी उत्पन्न करता है।
3. ध्वनी प्रदूषण : मनुष्य को रहने के लिए शांत वातावरण की जरूरत होती है। ध्वनी प्रदूषण एक नई समस्या उत्पन्न हो चुकी है। जब वाहनों, मोटर साइकिलों, डीजे, लाउडस्पीकर, कारखानों, साइरन की वजह से जो शोर होता है उसे ध्वनी प्रदूषण कहते हैं। ध्वनी प्रदूषण की वजह से हमारी सुनने की शक्ति कमजोर होती है। कई बार ध्वनी प्रदूषण से मानसिक तनाव की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। ध्वनी प्रदूषण एक अत्यंत हानिकारक समस्या है और इसका निवारण नितांत आवश्यक है।
4. रेडियो धर्मी प्रदूषण : परमाणु परिक्षण लगातार होते रहते हैं। इससे जो प्रदूषण होता है उसे रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं। यह एक बहुत ही हानिकारक प्रदूषण होता है जिसकी वजह से अनेक तरह से जीवन को हानि होती है। दूसरे विश्वयुद्ध के समय हिरोशिमा और नागासाकी पर जो परमाणु बम्ब गिराए गये थे उनके गंभीर परिणामों को आज के समय में भी देखा जा सकता है।
5. रासायनिक प्रदूषण : जब कृषि उपज में कारखानों से बहते हुए अशुद्ध तत्वों के आलावा अनेक तरह के रासायनिक उर्वरकों और डीडीटी जैसी हानिकारक दवाईयों का प्रयोग किया जाता है। इन सब का हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इसे ही रासायनिक प्रदूषण कहते हैं।(भाग-२ जारी...)
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